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यादों भरी वो लाइब्ररी - आदर्श तिवारी | Yaadon Bhari wo Library - Adarsh Tiwary


यादों भरी वो लाइब्ररी
 
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 आज दिखी वो लाइब्ररी जहा हम तुम जाया करते थे,
Today I saw that library where we used to go,
ज़िन्दगी के पन्नो में बातें उखेरा करते थे|
We used to etch our conversations into the pages of life.
आज उन यादो से जुड़ने का एक और द्वार मिल गया,
Today I found another gateway to connect with those memories,
और मिला वो आधा प्यार, जो कभी यादों में था दब गया|
And found that half-love which had once been buried in memories.

किताबों से भरी हर वो तख़्त निहारा करती थी,
I used to gaze at every shelf filled with books,
जब तुम  उस कोने से मुझे पुकारा करती थी|
When you used to call out to me from that corner.
सन्नाटे मे हसने का तुम्हारा,वो एहसास मुझे फिर मिल गया, 
The feeling of your laughter in the silence, I found it again,
हर उस नज़ारे का मुझे,फिर से नज़ारा मिल गया|
I found that view of every sight once more.

  याद आई वो मेज़ जहा हम तुम संग बैठा करते थे,
I remembered that table where we used to sit together,
मिलती थी हमारी नज़रे ,घंटो बातें किया करते थे|
Our eyes would meet, and we would talk for hours.
वहा जाना तो बस, जाना पहचाना सा एक बहाना था,
Going there was just a familiar excuse,
वक्त की खाई मे भी,तुमसे मिलने जो आना था|
To meet you, even across the chasms of time.

रोज़ नए अध्याय हम अपने किस्से में जोड़ा करते थे,
Every day, we would add new chapters to our story,  
 तुम कहती थी, मैं सुनता था और ये दिन बीता करते थे|
You would speak, I would listen, and the days would pass.
 किताबों के पन्नो सा,जहां हम एक दूजे को पढ़ा करते थे,
Like the pages of a book, where we would read each other,
याद आ गयी वो लाइब्ररी जहा हम तुम जया करते थे। 
I remembered that library where we used to go.
 
~~~ आदर्श तिवारी ~~~
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